Wednesday, August 25, 2010

वाह सहवाग वाह

'वाह सहवाग वाह. तुस्सी ग्रेट हो.
पटना : 'वाह सहवाग वाह. तुस्सी ग्रेट हो. तूने तो डूबती नैया को पार लगा दी.' जिस तरह से टीम  इंडिया की इन  दिनों  गत गिरती जा रही थी, उससे कुछ तो निजात मिलेगी. ख़ास कर किवी टीम से 200  रन से हार ने इंडिया के सारे रिकोर्ड को 'ध्वस्त' कर दिया था. यानी 88  रन पर ही इसकी बोरिया-बिस्तर सिमट गयी थी. रही-सही कसर श्री लंका ने पूरी कर दी. उसने  भी 109  रन पर ही इंडिया की मिट्टी पलीद कर दी. बुधवार को डू और डाय वाली स्थिति थी. लेकिन, यहाँ भी टीम की हालत खराब थी. एक साईड से धडाधड विकेट गिर रहे थे. ऐसे विकट समय में  वीरू ने अपना विकेट बचा कर रखा. ओपनिंग करते हुए शतक ठोक डाला. उसने यह भी सिद्ध कर दिया कि लंकन टीम ने उसे जो 99  का चक्कर दिया था, उससे वे निराश नहीं हैं. साथ ही यह मैसेज भी दे दिया कि लंकन टीम उसे कमजोर न आंकें. इसी के साथ वीरू टेस्ट  और वनडे में एक हजार चौके वाले क्लब में शामिल में हो गए.      

Saturday, August 21, 2010

कुछ तो शर्म करो!

पटना : संसद में पिछले कई दिनों से सांसदों के वेतन वृद्धि को लेकर हो-हंगामा होता रहा. वेतन वृद्धि भी हुई, लेकिन कुछ पार्टियों के नेताओं को अब भी मन नहीं भरा है. इसमें राजद, जदयू, सपा आदि की ओर से सदन में हंगामा किया गया. यहाँ तक कि कई बार तो कार्यवाही को भी रोकनी पडी. वेतन वृद्धि पर नजर डालें तो पातें हैं कि वेतन 16000 से बढ़ाकर 50000  कर दिया गया. इसी  तरह,  ऑफिस  खर्च 20000  से 40000 , तो संसदीय भत्ता भी 20000  से 40000  कर दिया गया. लेकिन वेतन को लेकर कुछ पार्टियां अब भी संतुष्ट नहीं हैं.  उनका तर्क है कि सचिव का वेतन 80000  है तो उनके  सांसद  का  वेतन  50000  कैसे होगा. लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि छोटे कर्मचारियों का क्या होगा, जिन्हें  उनके वेतन का एक परसेंट भी नहीं मिलता है.  खासकर बिहार में शिक्षकों की नियत वेतन  पर बहाली  हुई है. रुरल   से  अर्बन  एरियाज तक में 4000  से 7000 रुपए पर इनकी बहाली हुई है. इनके वेतन को नियत करने में उन्हीं पार्टियों  का  हाथ है, जिनके माननीय को पांच गुणा वेतन वृद्धि चाहिए. नियत वेतन में माननीयों ने अपने नीयत पर जरा-सा  भी  ध्यान नहीं दिया. इसका  सबसे दुखद पहलू यह है कि जिस स्कूल में शिक्षक का वेतन 4000 से 7000 है, उसी स्कूल में चपरासी का वेतन 10-12  हजार से ऊपर है. सांसदों को अपना वेतन सेक्रेटरी के ऊपर तो दिखा, लेकिन उन  शिक्षकों का वेतन नहीं दिखा, जिन्हें अपने ही स्कूल में चपरासी से भी कम  मिल रहा है. क्यूं है न शर्म वाली बात...!       

Thursday, August 05, 2010

ए मुहब्बत जिंदाबाद...

पटना : 'प्यार किया तो डरना क्या...' और  'जिंदाबाद जिंदाबाद, ए मुहब्बत  जिंदाबाद...' ये ऐसे गाने हैं, जो आज भी कर्णप्रिय ही नहीं, बल्कि दिल को छू लेते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि राजनीतिक अड्डा पर प्यार के तराने क्यों छेड़ दिए हैं. जब छेड़ ही दिए हैं तो थोड़ा सुन भी लीजिये. यह फिल्म 1960  में  रिलीज  हुई  थी.  हालाँकि  'मुगले आजम' के बनाने  की तैयारी 1944  में ही हो गयी थी. लेकिन,  यह  ठीक  50  साल  पहले  आज के ही दिन रिलीज हुई थी. इसके  बाद  भी इसका  क्रेज  आज  भी बरकरार है. आज भी लोग इस फिल्म को  उसी चाव से देखते  हैं. इसके गानों को उसी अंदाज में गुनगुनाते हैं. यह जानकार  आपको और भी आश्चर्य लगेगा कि उस समय भी इसके टिकट  ब्लैक  में बिके थे. यानी 1.50 रुपये के टिकट 100 रुपये में लोगों  ने  खरीदा  था. इसकी  कुछ  तैयारी पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि इस फिल्म की लागत 1.50 करोड़ रुपये आयी थी, जबकि  इसमें  बनाए  गए  शीश महल पर 15 लाख रुपये खर्च किये गए थे. इतना ही नहीं, इसकी शूटिंग  में 2000  ऊँट, 4000  घोड़े के अलावा 8000   जवान लगाए गए थे. इसमें शकील बदायुनी  के गीत तथा नौशाद के संगीत है. चलिए  यह भी बता देते हैं कि इसे  स्वर  सम्राज्ञी  लता  मंगेश्कर, स्वर सम्राट   मो  रफ़ी के अलावा शमशाद ने अपनी  आवाजों  से सुपर-डुपर हिट करा दिया, और पचास वर्षों के बाद भी यह सुपर हिट है. और अब रही बात राजनीतिक की, तो यह राजनेताओं को इससे  जरूर  सबक लेनी चाहिए कि वे इस तरह काम को तरजीह दें कि आनेवाला समय उन्हें माईल स्टोन के रूप में याद  करें.  हालाँकि  यह  सिर्फ कहने में ही  अच्छा लगता है. आज भले ही राजनीतिक गलियारों में मिल्लत, आपसी सद्भाव, एकता, अखंडता, प्रेम की बातें हो रही  हैं,  लेकिन सच यही है कि इस हमाम में सब नंगे हैं. कहें तो इस छवि  से  नेताओं को ऊपर उठना होगा, तभी सबका कल्याण है, वरना  हम  तो  यही कहेंगे राम जाने...........       

Monday, August 02, 2010

नास्ते की जय हो!

रेखा चित्र देना मजबूरी थी, फोटो
में शायद किसी की शक्ल छूट
सकती थी...
 पटना :  नास्ते की जय हो! आज की राजनीति में यह बिल्कुल फिट बैठती है. कहा भी जाता है कि नास्ते हो या फिर चाय की चुस्की, ऐसे मौकों पर बड़ी से बड़ी प्रोब्लम हल हो जाती है.  कहें तो राजनीतिक  गलियारों में इसका काफी महत्व है.  यह  इन दिनों देखा भी जा रहा है. पार्टियां कोई भी हो,  इस बहाने एक-दूजे  के  निकट  पहुँच  रही  है.  अब  कल  रविवार की ही बात ले लें, केन्द्रीय नेता प्रणब मुखर्जी के आवास पर खूब चली चाय की चुस्की, इसमें  हाथ  धोने  में कोई भी पार्टी  पीछे  नहीं रही. यानी कांग्रेस के 'घर'  पर भाजपा के 'भक्तन' तक की भीड़ लग गयी थी. ऐसे  में यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए  कि  समय के साथ बदलने में 'नेता' जी का कोई जोड़ नहीं है. कुछ  दिनों पहले इस तरह का 'ड्रामा' बिहार में भी देखने को मिला था. 'भोज' को रद्द कर दिया गया था, लेकिन एक सप्ताह के बाद ही 'नास्ते' पर सारे  मामले  फ़रिया लिये गए. राजनीतिक गलियारों में इस तरह की घटनाएँ आम हैं.