Tuesday, June 29, 2010

भई यह पटना है...

ज़रा - सी बारिश और पटना
का यह हाल
पटना : भई यह पटना है...कभी इसका नाम पाटलिपुत्र, तो कभी कुसुमपुर था। और इसका गवाह यहाँ का ऐतिहासिक गांधी मैदान भी है। लेकिन, सब दिन पटना की किस्मत में परेशानी बनकर आया है पानी। कभी बाढ़, कभी जलजमाव, तो कभी वाटर संकट को सदियों से झेलता आ रहा है पटना और इससे परेशान होते रहे हैं पटनावासी। अब इस बार मानसून ने पटना को ठगने में लगा है। १० जून को ही आनेवाला मानसून जून गुजर जाने के बाद भी अपने रंग में नहीं आया है। २९ जून को भी बादल उमड़-घुमड़ कर बस आधा घंटा किसी तरह बरसा, फिर वही गर्मी। यानी चिप-चिप वाली। लेकिन सबसे दुर्भाग्य तो यह है कि इतनी ही बारिश ने कुछ इलाकों को डुबो दिया। फोटो में इसे आप आसानी से देख सकते हैं। किस तरह लोग 'हाई जम्प-लॉन्ग जम्प' कर रहे हैं। हाँ, इस पर किसी राजनेताओं का ध्यान नहीं है। मौसम यदि 'वोट' का रहता तो फिर देखते कि किस तरह खद्दरधारियों की भीड़ लगी रहती। ७५ में भी बाढ़ ने पटना को परेशानी में डाल दिया था। वैसे कहा भी गया है कि पटना को पानी से ही ख़तरा है, लेकिन कभी-कभी लगता है कि नहीं, अगर पटना को ख़तरा है तो वह है राजनेताओं से...

Sunday, June 27, 2010

नम हो गयीं आँखें


पटना : बांका के सांसद दिग्विजय बाबू का पार्थिव शरीर आज सुबह पटना जंक्शन पर पहुंचा। पूर्वा एक्सप्रेस के यहाँ पहुँचते ही दिग्विजय बाबू अमर रहे से पूरा जंक्शन परिसर गूंज उठा। सी एम नीतीश कुमार, आर जे डी प्रमुख लालू प्रसाद समेत काफी संख्या में उनके समर्थक पहुंचे थे। सबकी आँखें नम थीं। कहें तो राजनीति का एक मज़बूत खम्भा सदा के लिए उखड गया था। सोमवार को उनके पैतृक गाँव में उन्हें भावभीनी विदाई दी जायेगी। दिग्विजय बाबू ने अपने राजनीतिक कार्यकाल में सम्मान से और सर उठाकर जीने की कला सीखा गए। रविवार को नीतीश कुमार (ऊपर) और लालू प्रसाद (नीचे) दिग्विजय बाबू के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण करते हुए.

Sunday, June 20, 2010

राज के लिए यह कैसी नीति!

पटना : 'राज' के लिए न जाने 'नेताओं' को क्या-क्या न करना पड़ता है। उनकी सारी 'नीति' बदल जाती है। सच कहें तो यही राजनीति भी है और यह सब है वोट बैंक का कमाल। आज बिहार की राजनीति में जो कुछ हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। हर कोई इसका माज़रा समझ रहा है कि किसके मन में क्या है और कौन सा 'चोर' घर कर गया है। गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के मामले में यही हो रहा है। अब देख लीजिये कि लुधियाना की आग किस तरह इन दिनों बिहार की राजनीतिक गलियारे में धीरे-धीरे ज्वालामुखी बन रही है। एक विज्ञापन ने नीतीश सरकार के सारे विज्ञापन की हवा निकाल दी। हालांकि पहली नज़र में हर कोई नीतीश कुमार को ही दोषी ठहराएगा, जिस तरह भोज देकर उसे रद्द कर दिया गया, यह जानते हुए कि यहाँ 'अतिथि देवो भव:' की संस्कृति कायम है। इसके बाद आता है पैसा घुमाने का मामला। सवाल है कि अब तक कोसी त्रासदी के पैसे खर्च क्यों नहीं हुए, फिर नरेन्द्र मोदी नीतीश जी को गवारा नहीं हैं तो भाजपा के सुशील मोदी कैसे पच रहे हैं! बस इसका एक ही मतलब है कि 'राजनीति' में भैया सब 'जायज' है, क्योंकि जनता 'बेचारी' जो ठहरी। लेकिन, सबको यह पता है कि 'ये पब्लिक है सब जानती है ये पब्लिक है...

Sunday, June 13, 2010

यह जरूरी है क्या

पटना की सडकों पर कुछ इसी अंदाज़ में
पहुंचे थे सम्बंधित लोग
पटना : किसी भी रैली के लिए 'नाच' जरूरी है क्या। लेकिन पिछले कई रैलियों से यह देखने को मिल रहा है। कहें तो यह फैशन के रूप में चल पडा है। कुछ 'नेताओं' के लिए यह भीड़ जुटाने का नुस्खा है अथवा वे ऐसा समझते हैं। रविवार १३ जून को पटना में भाजपा की स्वाभिमान रैली में यह सब देखने को मिला। यह ऐसी रैली थी, जो चुनावी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण थी। फिर यह सिर्फ रैली ही नहीं थी, बल्कि भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन भी था। यह बुद्ध-महावीर की धरती पर सोलह वर्षों के बाद हुआ था। तभी तो इसमें भाजपा के फर्स्ट सर्किल के तमाम दिग्गज नेता पटना पहुंचे हुए थे। ऐसे में पटना की सड़कों पे इस तरह का नाच ठीक लगता है क्या! राजद के शासन काल में भी इस तरह के नाच रैली की पूर्व संध्या पर होते रहे थे। सबसे अधिक 'लाठी रैली' में यह नजारा देखने को मिला था। भीड़ जुटाने के लिए क्या यह सही है, फैसला पब्लिक पर........!