Sunday, June 20, 2010

राज के लिए यह कैसी नीति!

पटना : 'राज' के लिए न जाने 'नेताओं' को क्या-क्या न करना पड़ता है। उनकी सारी 'नीति' बदल जाती है। सच कहें तो यही राजनीति भी है और यह सब है वोट बैंक का कमाल। आज बिहार की राजनीति में जो कुछ हो रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। हर कोई इसका माज़रा समझ रहा है कि किसके मन में क्या है और कौन सा 'चोर' घर कर गया है। गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के मामले में यही हो रहा है। अब देख लीजिये कि लुधियाना की आग किस तरह इन दिनों बिहार की राजनीतिक गलियारे में धीरे-धीरे ज्वालामुखी बन रही है। एक विज्ञापन ने नीतीश सरकार के सारे विज्ञापन की हवा निकाल दी। हालांकि पहली नज़र में हर कोई नीतीश कुमार को ही दोषी ठहराएगा, जिस तरह भोज देकर उसे रद्द कर दिया गया, यह जानते हुए कि यहाँ 'अतिथि देवो भव:' की संस्कृति कायम है। इसके बाद आता है पैसा घुमाने का मामला। सवाल है कि अब तक कोसी त्रासदी के पैसे खर्च क्यों नहीं हुए, फिर नरेन्द्र मोदी नीतीश जी को गवारा नहीं हैं तो भाजपा के सुशील मोदी कैसे पच रहे हैं! बस इसका एक ही मतलब है कि 'राजनीति' में भैया सब 'जायज' है, क्योंकि जनता 'बेचारी' जो ठहरी। लेकिन, सबको यह पता है कि 'ये पब्लिक है सब जानती है ये पब्लिक है...

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