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रेखा चित्र देना मजबूरी थी, फोटो में शायद किसी की शक्ल छूट सकती थी... |
पटना : नास्ते की जय हो! आज की राजनीति में यह बिल्कुल फिट बैठती है. कहा भी जाता है कि नास्ते हो या फिर चाय की चुस्की, ऐसे मौकों पर बड़ी से बड़ी प्रोब्लम हल हो जाती है. कहें तो राजनीतिक गलियारों में इसका काफी महत्व है. यह इन दिनों देखा भी जा रहा है. पार्टियां कोई भी हो, इस बहाने एक-दूजे के निकट पहुँच रही है. अब कल रविवार की ही बात ले लें, केन्द्रीय नेता प्रणब मुखर्जी के आवास पर खूब चली चाय की चुस्की, इसमें हाथ धोने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रही. यानी कांग्रेस के 'घर' पर भाजपा के 'भक्तन' तक की भीड़ लग गयी थी. ऐसे में यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि समय के साथ बदलने में 'नेता' जी का कोई जोड़ नहीं है. कुछ दिनों पहले इस तरह का 'ड्रामा' बिहार में भी देखने को मिला था. 'भोज' को रद्द कर दिया गया था, लेकिन एक सप्ताह के बाद ही 'नास्ते' पर सारे मामले फ़रिया लिये गए. राजनीतिक गलियारों में इस तरह की घटनाएँ आम हैं.
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