![]() |
'वाह सहवाग वाह. तुस्सी ग्रेट हो. |
Wednesday, August 25, 2010
वाह सहवाग वाह
Saturday, August 21, 2010
कुछ तो शर्म करो!
पटना : संसद में पिछले कई दिनों से सांसदों के वेतन वृद्धि को लेकर हो-हंगामा होता रहा. वेतन वृद्धि भी हुई, लेकिन कुछ पार्टियों के नेताओं को अब भी मन नहीं भरा है. इसमें राजद, जदयू, सपा आदि की ओर से सदन में हंगामा किया गया. यहाँ तक कि कई बार तो कार्यवाही को भी रोकनी पडी. वेतन वृद्धि पर नजर डालें तो पातें हैं कि वेतन 16000 से बढ़ाकर 50000 कर दिया गया. इसी तरह, ऑफिस खर्च 20000 से 40000 , तो संसदीय भत्ता भी 20000 से 40000 कर दिया गया. लेकिन वेतन को लेकर कुछ पार्टियां अब भी संतुष्ट नहीं हैं. उनका तर्क है कि सचिव का वेतन 80000 है तो उनके सांसद का वेतन 50000 कैसे होगा. लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि छोटे कर्मचारियों का क्या होगा, जिन्हें उनके वेतन का एक परसेंट भी नहीं मिलता है. खासकर बिहार में शिक्षकों की नियत वेतन पर बहाली हुई है. रुरल से अर्बन एरियाज तक में 4000 से 7000 रुपए पर इनकी बहाली हुई है. इनके वेतन को नियत करने में उन्हीं पार्टियों का हाथ है, जिनके माननीय को पांच गुणा वेतन वृद्धि चाहिए. नियत वेतन में माननीयों ने अपने नीयत पर जरा-सा भी ध्यान नहीं दिया. इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि जिस स्कूल में शिक्षक का वेतन 4000 से 7000 है, उसी स्कूल में चपरासी का वेतन 10-12 हजार से ऊपर है. सांसदों को अपना वेतन सेक्रेटरी के ऊपर तो दिखा, लेकिन उन शिक्षकों का वेतन नहीं दिखा, जिन्हें अपने ही स्कूल में चपरासी से भी कम मिल रहा है. क्यूं है न शर्म वाली बात...!
Thursday, August 05, 2010
ए मुहब्बत जिंदाबाद...
पटना : 'प्यार किया तो डरना क्या...' और 'जिंदाबाद जिंदाबाद, ए मुहब्बत जिंदाबाद...' ये ऐसे गाने हैं, जो आज भी कर्णप्रिय ही नहीं, बल्कि दिल को छू लेते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि राजनीतिक अड्डा पर प्यार के तराने क्यों छेड़ दिए हैं. जब छेड़ ही दिए हैं तो थोड़ा सुन भी लीजिये. यह फिल्म 1960 में रिलीज हुई थी. हालाँकि 'मुगले आजम' के बनाने की तैयारी 1944 में ही हो गयी थी. लेकिन, यह ठीक 50 साल पहले आज के ही दिन रिलीज हुई थी. इसके बाद भी इसका क्रेज आज भी बरकरार है. आज भी लोग इस फिल्म को उसी चाव से देखते हैं. इसके गानों को उसी अंदाज में गुनगुनाते हैं. यह जानकार आपको और भी आश्चर्य लगेगा कि उस समय भी इसके टिकट ब्लैक में बिके थे. यानी 1.50 रुपये के टिकट 100 रुपये में लोगों ने खरीदा था. इसकी कुछ तैयारी पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि इस फिल्म की लागत 1.50 करोड़ रुपये आयी थी, जबकि इसमें बनाए गए शीश महल पर 15 लाख रुपये खर्च किये गए थे. इतना ही नहीं, इसकी शूटिंग में 2000 ऊँट, 4000 घोड़े के अलावा 8000 जवान लगाए गए थे. इसमें शकील बदायुनी के गीत तथा नौशाद के संगीत है. चलिए यह भी बता देते हैं कि इसे स्वर सम्राज्ञी लता मंगेश्कर, स्वर सम्राट मो रफ़ी के अलावा शमशाद ने अपनी आवाजों से सुपर-डुपर हिट करा दिया, और पचास वर्षों के बाद भी यह सुपर हिट है. और अब रही बात राजनीतिक की, तो यह राजनेताओं को इससे जरूर सबक लेनी चाहिए कि वे इस तरह काम को तरजीह दें कि आनेवाला समय उन्हें माईल स्टोन के रूप में याद करें. हालाँकि यह सिर्फ कहने में ही अच्छा लगता है. आज भले ही राजनीतिक गलियारों में मिल्लत, आपसी सद्भाव, एकता, अखंडता, प्रेम की बातें हो रही हैं, लेकिन सच यही है कि इस हमाम में सब नंगे हैं. कहें तो इस छवि से नेताओं को ऊपर उठना होगा, तभी सबका कल्याण है, वरना हम तो यही कहेंगे राम जाने...........
Monday, August 02, 2010
नास्ते की जय हो!
![]() |
रेखा चित्र देना मजबूरी थी, फोटो में शायद किसी की शक्ल छूट सकती थी... |
पटना : नास्ते की जय हो! आज की राजनीति में यह बिल्कुल फिट बैठती है. कहा भी जाता है कि नास्ते हो या फिर चाय की चुस्की, ऐसे मौकों पर बड़ी से बड़ी प्रोब्लम हल हो जाती है. कहें तो राजनीतिक गलियारों में इसका काफी महत्व है. यह इन दिनों देखा भी जा रहा है. पार्टियां कोई भी हो, इस बहाने एक-दूजे के निकट पहुँच रही है. अब कल रविवार की ही बात ले लें, केन्द्रीय नेता प्रणब मुखर्जी के आवास पर खूब चली चाय की चुस्की, इसमें हाथ धोने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रही. यानी कांग्रेस के 'घर' पर भाजपा के 'भक्तन' तक की भीड़ लग गयी थी. ऐसे में यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि समय के साथ बदलने में 'नेता' जी का कोई जोड़ नहीं है. कुछ दिनों पहले इस तरह का 'ड्रामा' बिहार में भी देखने को मिला था. 'भोज' को रद्द कर दिया गया था, लेकिन एक सप्ताह के बाद ही 'नास्ते' पर सारे मामले फ़रिया लिये गए. राजनीतिक गलियारों में इस तरह की घटनाएँ आम हैं.
Wednesday, July 28, 2010
सब कुर्सी का खेल
![]() |
मुंगेर में एक सप्ताह पूर्व जदयू के जिला सम्मलेन में हंगामा करते कार्यकर्ता |
Thursday, July 22, 2010
तौबा-तौबा ऐसी राजनीति से...
![]() |
बिहार विधानसभा कैम्पस में तोड़-फोड़ करती कांग्रेस एम एल ए |
Wednesday, July 21, 2010
छिया-छिया राम-राम
पटना : छिया-छिया राम-राम. सच में आज जो कुछ हुआ बिहार विधान सभा में उसे देख कर तो हर कोई यही कहेगा. मंगलवार की घटना ने महावीर और बुद्ध की धरती को शर्मसार कर दिया. सदन में जूतम-पैजार की यह घटना उस समय हुई, जब यहाँ के मुखिया समेत उनके तमाम सिपहसलार मौजूद थे. ऐसे में ये लोग देश, राज्य व समाज को क्या शिक्षा देंगे! इस घटना को पूरा देश देख रहा था. पक्ष या विपक्ष सबने मिलकर बिहार की गरिमा को मटियामेट कर दिया. लोकतंत्र का मंदिर कलंकित हो गया. इज्जत-आबरू की बखिया उधड़ गयी. मर्यादाएं तार-तार हो गयी. कहें तो इसमें कहने को अब कुछ भी नहीं रह गया है.
Sunday, July 11, 2010
भईया, चुनाव नजदीक है...
केन्द्रीय रेलवे मिनिस्टर के एच मनियाप्पा पटना के दौरे पर आये थे |
पटना : भईया, चुनाव नजदीक है..., तभी तो नेताओं के तरकश से एक से बढकर एक वाण निकालने लगे हैं. बिहार में कांग्रेसी मंत्रियों के दौरे को जहां जदयू और भाजपा वाले 'एयर ड्रोपिंग' बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस अब 'एयर बमबार्डिंग' की बात कर रही है. फोटो में सेन्ट्रल रेलवे स्टेट मिनिस्टर के एच मनियाप्पा दीघा पुल की घोषणा करते हुए. इसके अलावा विभिन्न दलों की ओर से महंगाई पर बंद भी चुनाव की ही 'तैयारी' है. अब इसको लेकर बयानबाजी भी शुरू हो गयी है. यानी हर कोई
एक दूजे को फ्लॉप बता रहे हैं. वे एक-दूसरे में मीन-मेख निकाल रहे है. कहें तो इस चुनावी दलदल में हर दल कूदने को तैयार है. भईया, यह तो अभी शुरुआत है, देखिये आगे-आगे होता है क्या...
Monday, July 05, 2010
बंद के लिए यह सब...
भारत बंद के दौरान पटना के मसौढी में जो कुछ हुआ, उसे टीवी चैनल्स पर पूरा देश देखा. सड़क पर डांस करती बाला गर्ल्स |
पटना : बंद के लिए यह सब ना बाबा ना. 5 जुलाई को भारत बंद के दौरान बिहार में यह भी देखने को मिला. बंद के लिए लड़कियों से भी लगवाना पड़ा ठुमका..., यह हम नहीं, बल्कि फोटो कहती है... कुछ दिन पहले भाजपा की स्वाभिमान रैली में भी यही कुछ देखने को मिला.
Tuesday, June 29, 2010
भई यह पटना है...
ज़रा - सी बारिश और पटना का यह हाल |
पटना : भई यह पटना है...कभी इसका नाम पाटलिपुत्र, तो कभी कुसुमपुर था। और इसका गवाह यहाँ का ऐतिहासिक गांधी मैदान भी है। लेकिन, सब दिन पटना की किस्मत में परेशानी बनकर आया है पानी। कभी बाढ़, कभी जलजमाव, तो कभी वाटर संकट को सदियों से झेलता आ रहा है पटना और इससे परेशान होते रहे हैं पटनावासी। अब इस बार मानसून ने पटना को ठगने में लगा है। १० जून को ही आनेवाला मानसून जून गुजर जाने के बाद भी अपने रंग में नहीं आया है। २९ जून को भी बादल उमड़-घुमड़ कर बस आधा घंटा किसी तरह बरसा, फिर वही गर्मी। यानी चिप-चिप वाली। लेकिन सबसे दुर्भाग्य तो यह है कि इतनी ही बारिश ने कुछ इलाकों को डुबो दिया। फोटो में इसे आप आसानी से देख सकते हैं। किस तरह लोग 'हाई जम्प-लॉन्ग जम्प' कर रहे हैं। हाँ, इस पर किसी राजनेताओं का ध्यान नहीं है। मौसम यदि 'वोट' का रहता तो फिर देखते कि किस तरह खद्दरधारियों की भीड़ लगी रहती। ७५ में भी बाढ़ ने पटना को परेशानी में डाल दिया था। वैसे कहा भी गया है कि पटना को पानी से ही ख़तरा है, लेकिन कभी-कभी लगता है कि नहीं, अगर पटना को ख़तरा है तो वह है राजनेताओं से...
Sunday, June 27, 2010
नम हो गयीं आँखें


Sunday, June 20, 2010
राज के लिए यह कैसी नीति!

Sunday, June 13, 2010
यह जरूरी है क्या
पटना की सडकों पर कुछ इसी अंदाज़ में पहुंचे थे सम्बंधित लोग |
पटना : किसी भी रैली के लिए 'नाच' जरूरी है क्या। लेकिन पिछले कई रैलियों से यह देखने को मिल रहा है। कहें तो यह फैशन के रूप में चल पडा है। कुछ 'नेताओं' के लिए यह भीड़ जुटाने का नुस्खा है अथवा वे ऐसा समझते हैं। रविवार १३ जून को पटना में भाजपा की स्वाभिमान रैली में यह सब देखने को मिला। यह ऐसी रैली थी, जो चुनावी दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण थी। फिर यह सिर्फ रैली ही नहीं थी, बल्कि भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन भी था। यह बुद्ध-महावीर की धरती पर सोलह वर्षों के बाद हुआ था। तभी तो इसमें भाजपा के फर्स्ट सर्किल के तमाम दिग्गज नेता पटना पहुंचे हुए थे। ऐसे में पटना की सड़कों पे इस तरह का नाच ठीक लगता है क्या! राजद के शासन काल में भी इस तरह के नाच रैली की पूर्व संध्या पर होते रहे थे। सबसे अधिक 'लाठी रैली' में यह नजारा देखने को मिला था। भीड़ जुटाने के लिए क्या यह सही है, फैसला पब्लिक पर........!
Subscribe to:
Posts (Atom)